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Slow Hindi – Microfinance (part 4)

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Hi, my name is Altergyan and today we have a slow Hindi lesson where I will read part of a wikipedia.org article to you slowly in Hindi.  This will give you a chance to practice reading Hindi.    Today we continue on to the next session in the Wikipedia.org article on microfinance or लघु वित्त in Hindi.

http://hi.wikipedia.org/s/xoe

वादविवादों का घेरा

व्यष्टि-वित्त के इर्द-गिर्द अनेक महत्वपूर्ण वाद-विवाद खड़े हुए हैं।

व्यष्टि-वित्त के व्यवसायी और दानी, अक्सर यह दलील पेश करते हैं कि लघु-ऋण, उत्पादक प्रयोजनों के लिए, जैसे लघु-उद्यम शुरू करने अथवा उसके विस्तार तक सीमित किया जाना चाहिए. इसकी प्रतिक्रिया में निजी क्षेत्र के पैरवीकारों की दलील है कि पैसा चिरभोग्य होने के कारण प्रतिबंध लगाना असंभव है और किसी भी हालत में अमीर लोगों को यह तय नहीं करना चाहिए कि ग़रीब लोग अपना पैसा कैसे खर्च करें.

संभवत: सूदख़ोरी के बारे में परंपरागत पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित होकर, पारंपरिक साहूकार की भूमिका की, ख़ास कर आधुनिक व्यष्टि-वित्त के प्रारंभिक दौर में, कड़ी आलोचना की गई। जैसे-जैसे ज़्यादा ग़रीब लोगों को लघु-ऋण संस्थाओं से ऋण मिलने लगे, यह बात साफ़ जाहिर हुई कि साहूकारों की सेवाएं मूल्यवान साबित होती रही हैं। उधारकर्ता, त्वरित ऋण संवितरण, गोपनीयता और लचीले चुकौती कार्यक्रम जैसी सेवाओं के लिए बेहद ज़्यादा ब्याज दर देने के लिए तैयार थे। उनको कभी ऐसा नहीं लगा कि पर्याप्त मुआवज़े के तौर पर कमतर ब्याज दर पाना, बैठकों में भाग लेने, संवितरण के लिए अर्ह बनने की दृष्टि से प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लेने अथवा मासिक संपार्श्विक अंशदान करने की क़ीमत से बढ़ कर है।

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जब वे दूसरे कारणों के लिए (जैसे स्कूल शुल्क अदा करने के लिए, स्वास्थ्य के प्रति खर्च के लिए अथवा परिवार की खाद्यान्न संबंधी जरूरतें पूरी करने के लिए) अक्सर उधार लिया करते थे, तब उनको ऐसा बहाना करने पर मजबूर करना भी अरुचिकर लगा कि वे कारोबार शुरू करने के लिए उधार ले रहे हैं।[9] हाल में समग्र वित्तीय प्रणाली पर दिए जाने वाले अधिक बल की वजह से (नीचे का खंड देखें) साहूकारों को, विनियमन के पक्ष में बहस करने और ग़रीब लोगों को उपलब्ध विकल्पों में वृद्धि के लिए, उनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के प्रति प्रयास करने की दिशा में अधिक वैधता मिलेगी.

आधुनिक व्यष्टि-वित्त, 1970 के दशक में उभरा, जिसमें निजी क्षेत्र के समाधान के प्रति अधिक उन्मुखता नज़र आई. यह इस प्रमाण से ज़ाहिर हुआ कि विकासशील दुनिया में राज्य सरकार के स्वामित्व वाले विकास बैंक, वास्तव में उनको दिए गए विकासोन्मुख लक्ष्य को नज़रंदाज करते हुए, सरासर विफल रहे (ऐडम, ग्रैहम और वॉन पिशके द्वारा संपादित संकलन देखें).[3] तथापि, कई देशों के सरकारी अधिकारियों की विचारधारा अलग है और वे व्यष्टि-वित्त बाज़ारों में हस्तक्षेप करने से बाज़ नहीं आते हैं।

‘बाह्य-पहुंच’ (ग़रीबों और अधिक दूरस्थ इलाकों में बसने वाले ग़रीबों तक पहुंचने की व्यष्टि-वित्त संस्थाओं की क्षमता) और ‘स्थिरता’ (अपना परिचालन खर्च और साथ ही, संभवत: अपने परिचालन राजस्व से, अपने नए ग्राहकों की सेवा करने में लगे खर्च को भरने की क्षमता) के बीच समझौताकारी तालमेल की तीक्ष्णता के बारे में लंबे समय से बहस होती रही है।[10] यद्यपि आम तौर पर यह सहमति हुई है कि व्यष्टि-वित्त के व्यवसायियों को कुछ हद तक इन लक्ष्यों को संतुलित करने की कोशिश करनी चाहिए, फिर भी बोलिविया में बैंकोसोल की न्यूनतम लाभोन्मुखता से लेकर बांग्लादेश में BRAC की अधिक एकीकृत ‘लाभ के लिए नहीं’ उन्मुखता तक बहुत सारी रणनीतियां नज़र आती हैं। यह बात न केवल अलग-अलग संस्थाओं के लिए, बल्कि राष्ट्रीय व्यष्टि-वित्त प्रणाली को विकसित करने में जुटी सरकारों के लिए भी लागू होती है।

सामान्‍यत: व्यष्टि-वित्त के विशेषज्ञ सहमत हैं कि महिलाएं, सेवा पाने का प्राथमिक केंद्र बिंदु होनी चाहिए. सबूत इशारा करते हैं कि ऋण चुकाने में चूक होने की संभावना पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में कम होती है। 52 मिलीयन उधारकर्ताओं को ऋण देनेवाली 704 व्यष्टि-वित्त संस्थाओं (MFI) से 2006 से हासिल किए गए औद्योगिक आंकड़ों में, ऐसी व्यष्टि-वित्त संस्थाएं (MFI) शामिल हैं, जो परस्पर-निर्भर उधार पद्धति (99.3% महिला ग्राहक) अपनाती हैं और ऐसी व्यष्टि-वित्त संस्था‍एं (MFI), जो एकल उधार पद्धति (51% महिला ग्राहक) अपनाती हैं। परस्पर-निर्भर उधार के मामले में बकाया ऋण की मात्रा, 30 दिनों के बाद 0.9% (एकल उधार – 3.1%) रही, जबकि 0.3% ऋण बट्टे खाते डाले गए (एकल उधार – 0.9%).[11] चूंकि ऋण की मात्रा जितनी कम होती है, परिचालन मार्जिन उतना ही कम होता है, इसलिए कई व्यष्टि-वित्त संस्थाएं (MFI) यह मानती हैं कि पुरुषों को उधार देना, अधिक जोखिम भरा होता है। लेकिन कभी-कभार महिलाओं की तरफ भी यही सवाल उठा. विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित श्रीलंका के लघु उद्यमियों के हाल में किए गए अध्ययन में पाया गया कि पुरुषों की मिल्कियत के कारोबार (आधे नमूने) के मामले में पूंजी पर प्रतिफल औसतन 11% रहा, जबकि महिलाओं की मिल्कियत के कारोबार के मामले में पूंजी पर प्रतिफल 0% अथवा थोडा नकारात्मक रहा.[12]

व्यष्टि-वित्तीय सेवाओं की, विकसित देशों सहित, हर कहीं ज़रूरत है। लेकिन विकसित अर्थव्यवस्थाओं में, अलग-अलग लक्ष्य रखनेवाली विभिन्न प्रकार की वित्तीय संस्थाओं को मिला कर वित्तीय क्षेत्र के अंदर मौजूद तीव्र प्रतिस्पर्धा से यह सुनिश्चित होता है कि अधिकतर लोगों को कुछ न कुछ वित्तीय सेवाएं ज़रूर मिलती हैं। व्यष्टि-वित्त की नई अवधारणाओं को, जैसे विकासशील दुनिया के परस्पर-निर्भर उधार, विकसित देशों में हस्तांतरित करने के प्रयास ज़्यादा सफल नहीं हुए हैं।[13]

(from: http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4 )

 


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